पत्थर का घोड़ा
आन-बान मोर-पेंच, धनुष-बाण, यानी वीर-सूरमा भी कभी रहा होगा। अब तो टूटी समाधि के सामने साबुत खड़ा है सिर्फ़ पत्थर का घोड़ा। और भीतर के छटपटाते प्राण! पहचान सच-सच बता, जो कुछ हमें याद है उसमें कितनी है परम्परा और कितना बस अर्से से पड़ा रास्ते का रोड़ा?

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