ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे
ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे! मेरा जीवन तेरी वेदी, अंजलि बेसुध प्राणों ने दी; पीड़ा से तीखे, हृद्भेदी भावों से जलते दीपों की सदा आरती तुझ को घेरे! फूल नहीं थे, तू ले आया, मैं अवाक् थी, तू ने गाया : बिना किये पूजा फल पाया, मिटते-मिटते जाना मैं ने लीन हुई मैं उर में तेरे! ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे!

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