क्वाँर की बयार
इतराया यह और ज्वार का क्वाँर की बयार चली, शशि गगन पार हँसे न हँसे-- शेफ़ाली आँसू ढार चली ! नभ में रवहीन दीन-- बगुलों की डार चली; मन की सब अनकही रही-- पर मैं बात हार चली !

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