वासुदेव प्याला
यह वासुदेव प्याला भरते ही कृष्ण का चरण-स्पर्श पा रीत जाता है और फिर भरता है अनवरत : इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। आश्चर्य यह है कि यह बाढ़ जिस के चरण छूती है वह नहीं है डलिया में सोया बाल-कृष्ण : वह छलिया वह साँवलिया है जो कालिय नाग के मणिपूर मस्तक पर नाच रहा है। उस नर्तमान चरण को छूता है जल और उतर जाता है : पानी उतर जाता है... ओ रह : कृष्ण! तुम क्या नाग के नथैया और कालिन्दी के कन्हैया हो या कि नाग के ही बचैया- कि यह बाढ़ भी क्या इसी में धन्य है कि नाग ही तुम्हारा शरण्य है?

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