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चरण चलें, ईमान अचल हो! जब बलि रक्त-बिन्दु-निधि माँगे पीछे पलक, शीश कर आगे सौ-सौ युग अँगुली पर जागे...

मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि मलय मारुत के जी में शोर नहीं भर जाये, चुप कि चाँदनी के डोरों को शोर नहीं उलझाये, मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।...

विवश मैं तो वीणा का तार। जहाँ उठी अंगुली तुम्हारी, मुझे गूँजना है लाचारी, मुझको कम्पन दिया, तुम्हीं ने,...

बदरिया थम-थम कर झर री! सागर पर मत भरे अभागन, गागर को भर री! बदरिया थम-थम कर झर री!...

नयनों पर सुख, नयनों पर दुख, सुख में दुख, दुख में सुख जोड़ा। खुले अन्ध-नीलम पर तारे, रच-रच तोड़े कौन निगोड़ा?...

नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार, ’अत्याचार न होने देंगे’ बस इतनी ही थी मनुहार, सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास, वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास,...

हटा न सकता हृदय-देश से तुझे मूर्खतापूर्ण प्रबोध, हटा न सकता पगडंडी से उन हिंसक पशुओं का क्रोध, होगा कठिन विरोध करूँगा मैं निश्वय-निष्क्रिय-प्रतिरोध तोड़ पहाड़ों को लाऊँगा उस टूटी कुटिया का बोध।...

यह बारीक खयाली देखी? पौधे ने सिर उँचा करके, पत्ते दिये, डालि दी, फूला, और फूलकर, फल बन, पक कर, तरु के सिर चढ़ झूले झूला, तुमने रस की परख बड़ी की...

सिर से पाँव, धूलि से लिपटा, सभ्यों में लाचार दिगम्बर, बहते हुए पसीने से बनती गंगा के ओ गंगाधर; ओ बीहड़ जंगल के वासी, अधनंगे ओ तृण-तरु गामी एक-एक दाने को रोते, ओ सारी वसुधा के स्वामी!...

युग-धनी, निश्वल खड़ा रह! जब तुम्हारा मान, प्राणों तक चढ़ा, युग प्राण लेकर, यज्ञ-वेदी फल उठी जब...

अपनी जुबान खोलो तो हो कौन ज़रा बोले तो! रवि की कोमल किरणों में प्रिय कैसे बस लेते हो?...

"तू धीर धर हे वीर वर"--उस तीर से मैंने कहा! "बस छूट पड़ने दो अजी, मुझसे नहीं जाता रहा"। -जाता रहा, तो काम से ही जान ले जाता रहा, छूटा कि छूटा, और हो होकर टूक ठुकराता रहा।...

यह लाली है, सरकार आपकी कृपा-पूर्ण जंजीरों के घर्षण से, निकले मोती हैं। रखवाली है, हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है।...

आते-आते रह जाते हो--जाते-जाते दीख रहे, आँखे लाल दिखाते जाते, चित्त लुभाते दीख रहे, दीख रहे, पावनतर बनने की धुन के मतवाले-से, दीख रहे, करुणा-मन्दिर-से प्यारे देश निकाले-से,...

आग उगलती उधर तोप, लेखनी इधर रस-धार उगलती, प्रलय उधर घर-घर पर उतरा, इधर नज़र है प्यार उगलती! उधर बुढ़ापा तक बच्चा है, इधर जवानी छन-छन ढलती, चलती उधर मरण-पथ टोली, ’उनपर’ इधर तबीयत चलती!...

उठ-उठ तू, ओ तपी, तपोमय जग उज्ज्वल कर गूँजे तेरी गिरा कोटि भवनों में घर-घर गौरव का तू मुकुट पहिन युग के कर-पल्लव...

अंधड़ था, अंधा नहीं, उसे था दीख रहा, वह तोड़-फोड़ मनमाना हँस-हँस सीख रहा, पीपल की डाल हिली, फटी, चिंघाड़ उठी, आँधी के स्वर में वह अपना मुँह फाड़ उठी।...

चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ, डालियों को यों चिताने-सी लगी आँख की कलियाँ, अरी, खोलो जरा, हिल खपतियों को जगाने-सी लगी...

महमान मेरे नन्हे से ओ महमान! हम दोनों का मेल है तू ही, जग का जीवन-खेल है तू ही, नेह सींखचों जेल है तू ही,...

तुम भी देते हो तोल-तोल! नभ से बजली की वह पछाड़, फिर बूँदें बनना गोल-गोल, नभ-पति की भारी चकाचौंध,...

अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा! श्याम नभ के नेह के जी का सलौना खेत पाकर चमकते उन ज्योति-कुसुमों का बगीचा-सा लगाकर चार चाँद लगा प्रलय में,...

माँ—लल्ला, तू बाहर जा न कहीं, तू खेल यहीं, रमना न कहीं। बेटा—क्यों माँ? माँ—डायन लख पाएगी,...

यों मरमर मत करो आम्र--वन गरबीले युग बीत न जाएँ, रहने दो वसन्त को बन्दी, कोकिल के स्वर रीत न जाएँ। उठीं एशिया की गूजरियाँ, मोहन के वृत, मोहन में रत, दानव का बल बढ़ न जाय, वे इस घर से भयभीत न जाएँ।...

ममता के मीठे आमिष पर रहा टूटता भूखा-सा, भावों का सोता कर डाला, तीव्र ताप से रूखा-सा। कैसे? कहाँ? बता, चढ़ पाए जीवन-पंकज सूखा-सा, आवे क्यों दिलदार, जहाँ दिल हो, दावों से दूखा-सा?...

तेरा पता सुना था उन दुखियों की चीत्कारों में, तुझे खेलते देखा था, पगलों की मनुहारों में, अरे मृदुलता की नौका के माँझी, कैसे भूला, मीठे सपने देख रहा काग़ज की पतवारों में?...

मन, मन की न कहीं साख गिर जाये, क्यूँ शिकायत है?-भाई हर मन में जलन है। दृग जलधार को निहारने का रोज़गार-- कैसे करें?-हर पुतली में प्राणधन है।...

तुम न हँसो, हँसने से जालिम धोखा और सबल होता है, मैं हँसने की जड़ खोजूँ तो वह हँसने का फल होता है, हँसते हो जाने कैसा सा, बिखर-बिखर पारा झरता है।...

मैंने देखा था, कलिका के कंठ कालिमा देते मैंने देखा था, फूलों में उसको चुम्बन लेते...

पर्वतमालाओं में उस दिन तुमको गाते छोड़ा, हरियाली दुनिया पर अश्रु-तुषार उड़ाते छोड़ा, इस घाटी से उस घाटी पर चक्कर खात छोड़ा, तरु-कुंजों, लतिका-पुंजों में छुप-छुप जाते छोड़ा,...

चरखे, गा दे जी के गान! इक डोरा-सा उठता जी पर, इक डोरा उठता पूनी पर, दोनों कहते बल दे, बल दे,...

जिसके पापों के ज्ञाता हो, जिसमें क्षुद्रत्व दिखाता हो, जिसको न बोलना आता हो, जो केवल अश्रु बहाता हो, जो अपनों से वनवासी हो, जो सेहत का उपवासी हो, सहते-सहते, सहते-सहते, जो होता गया उदासी हो।...

क्यों स्वर से ध्वनियाँ उधार लूँ? क्यों वाचा के हाथ पसारूँ? मेरी कसक पुतलियों के स्वर, बोलो तो क्यों चरण दुलारूँ?...

आज बेटी जा रही है, मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है। मिलन यह जीवन प्रकाश वियोग यह युग का अँधेरा,...

यह बूँद-बूँद क्या? यह आँखों का पानी, यह बूँद-बूँद क्या? ओसों की मेहमानी, यह बूँद-बूँद क्या? नभ पर अमृत उँड़ेला, इस बूँद-बूँद में कौन प्राण पर खेला!...

धूल लिपटे हुए हँस-हँस के गजब ढाते हुए, नंद का मोद यशोदा का दिल बढ़ाते हुए, दोनों को देखता, दोनों की सुध भुलाते हुए, बाल घुँघरालों को मटका कर सिर नचाते हुए।...

तुम ठहरे, पर समय न ठहरा, विधि की अंगुलियों की रचना, तोड़ चला यह गूंगा, बहरा। घनश्याम के रूप पधारे हौले-हौले, धीरे-धीरे, मन में भर आई कालिन्दी झरती बहती गहरे-गहरे।...

किस तरुणी के प्रथम-हृदय-अर्पण के साहस-सी ये साँसें, और तरुण के प्रथम-प्रेम-सी जमुहाती, अटपटी उसाँसें, गई साँस के लौट-लौट आने का यह करोड़वाँ-सा क्षण...

ये जयति-जय घोष के काँटे गड़े, लोटने ये हार सर्पों से लगे, छोड़ कर आदर्श देव-उपासना, बन्धु, तुम किस तुच्छ पूजा को जगे?...

पत्थर के फर्श, कगारों में सीखों की कठिन कतारों में खंभों, लोहे के द्वारों में इन तारों में दीवारों में...

यौवन के छल की तरह दूर, कलिका से फल की तरह दूर, सीपी की खुली पंखुड़ियों से, स्वाती के जल की तरह दूर, ताड़ित तरंग की तरह पास, अधकटे अंग की तरह पास, उल्लास-श्वास की तरह? नहीं, पागल उलास की तरह पास,...