यह बरसगाँठ
किस तरुणी के प्रथम-हृदय-अर्पण के साहस-सी ये साँसें, और तरुण के प्रथम-प्रेम-सी जमुहाती, अटपटी उसाँसें, गई साँस के लौट-लौट आने का यह करोड़वाँ-सा क्षण वह क्षण जो बनने आया है परम याद के कर का कंकण। टेढ़े पल, उलझी घड़ियाँ, काले दिन, ये-- मट्मैली रातें; बन्दन, बलि, बन्दीगृह जिन पर बोते रहे विषम सौगातें। उन साँसों की एक डोर का एक छोर, बरस-गाँठ तेरी यह बरस-गाँठ

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