गीत (४)
नयनों पर सुख, नयनों पर दुख, सुख में दुख, दुख में सुख जोड़ा। खुले अन्ध-नीलम पर तारे, रच-रच तोड़े कौन निगोड़ा? संग चलो संग-संग री डोलो, मन की मोट सम्भालो संग-संग, हरी-हरी होवे वसुन्धरा, इस पर अमृत ढालो संग-संग। इन कसकों में कितनी सूझें? इन सूझों में कितना सुख है, गिर न जाय ओठों तक आकर, दे अनन्त! तू थोड़ा-थोड़ा। नयनों पर सुख, नयनों पर दुख, दुख में सुख, सुख में दुख जोड़ा।

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