Makhanlal Chaturvedi
( 1889 - 1968 )

Pandit Makhanlal Chaturvedi (Hindi: माखनलाल चतुर्वेदी), also called Panditji, was an Indian poet, writer, essayist, playwright and a journalist who is particularly remembered for his participation in India's national struggle for independence and his contribution to Chhayavaad, the Neo-romanticism movement of Hindi literature. He was awarded the first Sahitya Akademi Award in Hindi for his work Him Taringini in 1955. The Government of India awarded him the civilian honour of the Padma Bhushan in 1963. More

विवश मैं तो वीणा का तार। जहाँ उठी अंगुली तुम्हारी, मुझे गूँजना है लाचारी, मुझको कम्पन दिया, तुम्हीं ने,...

बदरिया थम-थम कर झर री! सागर पर मत भरे अभागन, गागर को भर री! बदरिया थम-थम कर झर री!...

नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार, ’अत्याचार न होने देंगे’ बस इतनी ही थी मनुहार, सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास, वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास,...

नयनों पर सुख, नयनों पर दुख, सुख में दुख, दुख में सुख जोड़ा। खुले अन्ध-नीलम पर तारे, रच-रच तोड़े कौन निगोड़ा?...

हटा न सकता हृदय-देश से तुझे मूर्खतापूर्ण प्रबोध, हटा न सकता पगडंडी से उन हिंसक पशुओं का क्रोध, होगा कठिन विरोध करूँगा मैं निश्वय-निष्क्रिय-प्रतिरोध तोड़ पहाड़ों को लाऊँगा उस टूटी कुटिया का बोध।...

मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि मलय मारुत के जी में शोर नहीं भर जाये, चुप कि चाँदनी के डोरों को शोर नहीं उलझाये, मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।...

चरण चलें, ईमान अचल हो! जब बलि रक्त-बिन्दु-निधि माँगे पीछे पलक, शीश कर आगे सौ-सौ युग अँगुली पर जागे...

यह बारीक खयाली देखी? पौधे ने सिर उँचा करके, पत्ते दिये, डालि दी, फूला, और फूलकर, फल बन, पक कर, तरु के सिर चढ़ झूले झूला, तुमने रस की परख बड़ी की...

सिर से पाँव, धूलि से लिपटा, सभ्यों में लाचार दिगम्बर, बहते हुए पसीने से बनती गंगा के ओ गंगाधर; ओ बीहड़ जंगल के वासी, अधनंगे ओ तृण-तरु गामी एक-एक दाने को रोते, ओ सारी वसुधा के स्वामी!...

युग-धनी, निश्वल खड़ा रह! जब तुम्हारा मान, प्राणों तक चढ़ा, युग प्राण लेकर, यज्ञ-वेदी फल उठी जब...