यह बारीक खयाली देखी
यह बारीक खयाली देखी? पौधे ने सिर उँचा करके, पत्ते दिये, डालि दी, फूला, और फूलकर, फल बन, पक कर, तरु के सिर चढ़ झूले झूला, तुमने रस की परख बड़ी की रस पर रीझे, रस को पाया, पर फल की मीठी फाँकों में माली की पामाली देखो? यह बारीक खयाली देखी? जब नदियों का प्यार समेटे ज्वार एक सागर को धाया, वहाँ किसी ने नमक, किसी ने मोती, मूँगे; घर भर लाया, जगे जौहरी बनकर, लाखों पाये, महल बनाये, भोगे, पनडुब्बे की पर क्या तुमने सूखी आँतें खाली देखीं? यह बारीक खयाली देखी? तुमहीं ने मलार गाया था, बादल घहर-घहर घिर आये, तुम हँस उठे जब कि धान के खेतों पर वैभव लहराये, तुम जहाज ले ले कर दौड़े चावल लूटा, घर ले आये, पर किसान की क्या भूखे बच्चों वाली घर वाली देखी? यह बारीक खयाली देखी?

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