कैदी की भावना
धूल लिपटे हुए हँस-हँस के गजब ढाते हुए, नंद का मोद यशोदा का दिल बढ़ाते हुए, दोनों को देखता, दोनों की सुध भुलाते हुए, बाल घुँघरालों को मटका कर सिर नचाते हुए। नंद जसोदा, जो वहाँ बैठे थे बतलाते हुए, साँवला दीख पड़ा हँसता हुआ, आते हुए। नन्द ने सोचा,--जरा पास तो आजाने दूँ, जाने वह और न यशोदा चट चुम्मा लूँ, खींच यशोदा ने लिया, नाथ मुझसे बातें करें, चूम लूँ कान्ह को चुपचाप कि जब वह गुजरे। श्याम ने, अपनी तरफ देख ली दोनों की नजर कुछ गुनगुनाते हुए आने लगा वह नटवर। दोनों तैयार हैं, किस ओर को पहले झपटूँ? बाप के कन्धे, या मैय्या के हिये से लपटूँ! पाया नजदीक, चूमने को बढ़ पड़े दोनों, प्यार का जोर था ऐसे उमड़ पड़े दोनों-- कान्ह ने धोखा दिया, ताली बजा, पीछे खिंचा जोर से बढ़ते हुए सर से लड़ पड़े दोनों।

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