बेटी की बिदा
आज बेटी जा रही है, मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है। मिलन यह जीवन प्रकाश वियोग यह युग का अँधेरा, उभय दिशि कादम्बिनी, अपना अमृत बरसा रही है। यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन, यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल रुनझुन, यह क्या, कि इस वीथी तुम्हारे तोतले से बोल फूटे, यह क्या, कि इस वैभव बने थे, चित्र हँसते और रूठे, आज यादों का खजाना, याद भर रह जायगा क्या? यह मधुर प्रत्यक्ष, सपनों के बहाने जायगा क्या? गोदी के बरसों को धीरे-धीरे भूल चली हो रानी, बचपन की मधुरीली कूकों के प्रतिकूल चली हो रानी, छोड़ जाह्नवी कूल, नेहधारा के कूल चली चली हो रानी, मैंने झूला बाँधा है, अपने घर झूल चली हो रानी, मेरा गर्व, समय के चरणों पर कितना बेबस लोटा है, मेरा वैभव, प्रभु की आज्ञा पर कितना, कितना छोटा है? आज उसाँस मधुर लगती है, और साँस कटु है, भारी है, तेरे बिदा दिवस पर, हिम्मत ने कैसी हिम्मत हारी है। कैसा पागलपन है, मैं बेटी को भी कहता हूँ बेटा, कड़ुवे-मीठे स्वाद विश्व के स्वागत कर, सहता हूँ बेटा, तुझे बिदाकर एकाकी अपमानित-सा रहता हूँ बेटा, दो आँसू आ गये, समझता हूँ उनमें बहता हूँ बेटा, बेटा आज बिदा है तेरी, बेटी आत्मसमर्पण है यह, जो बेबस है, जो ताड़ित है, उस मानव ही का प्रण है यह। सावन आवेगा, क्या बोलूँगा हरियाली से कल्याणी? भाई-बहिन मचल जायेंगे, ला दो घर की, जीजी रानी, मेंहदी और महावर मानो सिसक सिसक मनुहार करेंगी, बूढ़ी सिसक रही सपनों में, यादें किसको प्यार करेंगी? दीवाली आवेगी, होली आवेगी, आवेंगे उत्सव, ’जीजी रानी साथ रहेंगी’ बच्चों के? यह कैसे सम्भव? भाई के जी में उट्ठेगी कसक, सखी सिसकार उठेगी, माँ के जी में ज्वार उठेगी, बहिन कहीं पुकार उठेगी! तब क्या होगा झूमझूम जब बादल बरस उठेंगे रानी? कौन कहेगा उठो अरुण तुम सुनो, और मैं कहूँ कहानी, कैसे चाचाजी बहलावें, चाची कैसे बाट निहारें? कैसे अंडे मिलें लौटकर, चिडियाँ कैसे पंख पसारे? आज वासन्ती दृगों बरसात जैसे छा रही है। मिलन और वियोग की दुनियाँ नवीन बसा रही है। आज बेटी जा रही है।

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