गीत (१)
मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि मलय मारुत के जी में शोर नहीं भर जाये, चुप कि चाँदनी के डोरों को शोर नहीं उलझाये, मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि तारकों की समाधि में दूख उठेगा जय-रव, चुप कि चाँद में बिदा क्षणों की दर्शन-भूख न संभव। उठो मधुर! दरवाजे खोलो, वातायन खुल जाये, सदियों की उजड़ी साँसों में आज प्राण-प्रभु आये, मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये।

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