गीत (३)
बदरिया थम-थम कर झर री! सागर पर मत भरे अभागन, गागर को भर री! बदरिया थम-थम कर झर री! एक-एक, दो-दो, बूँदों में, बँधा सिन्धु का मेला, सहस-सहस बन विहँस उठा है, यह बूँदों का रेला। तू खोने से नहीं बावरी पाने से डर री! बदरिया थम-थम कर झर री! जग आये घनश्याम देख तो, देख गगन पर आगी, तूने बूँद, नींद खितिहर ने, साथ-साथ ही त्यागी। रही कजलियों की कोमलता, झंझा को वर री! बदरिया थम-थम कर झर री!

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