मन की साख
मन, मन की न कहीं साख गिर जाये, क्यूँ शिकायत है?-भाई हर मन में जलन है। दृग जलधार को निहारने का रोज़गार-- कैसे करें?-हर पुतली में प्राणधन है। व्यथा कि मिठास का दिवाला कैसे काढ़े उर? कान कहाँ जायें? लगी प्राणों से लगन है। प्यार है दिवाना उसे कुछ भी न पाना वह तेरे द्वार धूनियाँ रमाने में मगन है।

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