पतित
ममता के मीठे आमिष पर रहा टूटता भूखा-सा, भावों का सोता कर डाला, तीव्र ताप से रूखा-सा। कैसे? कहाँ? बता, चढ़ पाए जीवन-पंकज सूखा-सा, आवे क्यों दिलदार, जहाँ दिल हो, दावों से दूखा-सा? गिरने को जी चाह रहा है आगे और रसातल से, ऊँचा शीश उठाकर देखूँ? पर, देखूँ किसके बल से?

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