ऊषा
यह बूँद-बूँद क्या? यह आँखों का पानी, यह बूँद-बूँद क्या? ओसों की मेहमानी, यह बूँद-बूँद क्या? नभ पर अमृत उँड़ेला, इस बूँद-बूँद में कौन प्राण पर खेला! लाओ युग पर प्रलयंकरि वर्षा ढा दें, सद्य-स्नाता भू-रानी को लहरा दें। ऊषा बोली, दृग-द्वार खोल दे अपने, मैं लाई हूँ कुछ मीठे-मीठे सपने, सपनों की साँकल से, रवि का रथ जकड़ो, युग उठा चलो अंगुलियों पर गति पकड़ो। मत बाँट कि ये औरों के ये अपने, गति के गुनाह, ये मीठे मीठे सपने। यह उषा निशा के जाने की अंगड़ाई, तम को उज्जवल कर जब आँखों पर आई! मैं बोला, चल समेट, तारों की ढेरी! यह काल-कोठरी खाली कर दे मेरी! मैं आहों में अंगार लिये आता हूँ, जग-जागृति का व्यापार लिये आता हूँ। निशि ने शरमा कर पहला शशि-मुख चूमा, तब शशि का यह अस्तित्ववान रथ घूमा, गलबहियाँ दे, जब निशि-शशि छाये-छाये, जब लाख-लाख तारे निज पर शरमाये। कलियों की आँखें द्रुम-दल ने तब खोलीं, जग का नव-जय हो गया कि चिड़ियाँ बोलीं! इस श्याम-लता में तब- प्रकाश के फूल-सा सूरज आया, विद्रोही उथल-पुथल-सा।

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