अटल
हटा न सकता हृदय-देश से तुझे मूर्खतापूर्ण प्रबोध, हटा न सकता पगडंडी से उन हिंसक पशुओं का क्रोध, होगा कठिन विरोध करूँगा मैं निश्वय-निष्क्रिय-प्रतिरोध तोड़ पहाड़ों को लाऊँगा उस टूटी कुटिया का बोध। चूकेंगें आगे आने पर सारे दाँव विधाता के, धोऊँगा पद-कंज आँसुओं से मैं जीवन-दाता के।

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