उलहना
यह लाली है, सरकार आपकी कृपा-पूर्ण जंजीरों के घर्षण से, निकले मोती हैं। रखवाली है, हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है। मत खड़े रहो, ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में, तुम में अरमाँ, अरमानों में तुम गुँथो नहीं, क्या सुख है धोखा खाने में? चुम्बन में नहीं, पधारो तुम हर रोज उदार! प्रहारों में; त्योहार? सदा सूली के दिन मनते आये त्योहारों में।

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