कुलवधू का चरखा
चरखे, गा दे जी के गान! इक डोरा-सा उठता जी पर, इक डोरा उठता पूनी पर, दोनों कहते बल दे, बल दे, टूट न जाये तार बीच में, टूट न जाये तान, चरखे, गा दे जी के गान! उजली पूनी, उजले जीवन, है रंगीन नहीं उनका मन, यह सितार-सा तारों का धन, तार-तार भावी का स्वर-धन, चिर-सुहाग पहचान। चरखे, गा दे जी के गान! तार बने, तारों की उलझन, तार बने जीवन की पहरन, ढाँके इज्जत, ढाँके दो मन, दो डोरों के गठबन्धन से, बँधे हृदय-महमान, चरखे, गा दे जी के गान!

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