बेचैनी
जिसके पापों के ज्ञाता हो, जिसमें क्षुद्रत्व दिखाता हो, जिसको न बोलना आता हो, जो केवल अश्रु बहाता हो, जो अपनों से वनवासी हो, जो सेहत का उपवासी हो, सहते-सहते, सहते-सहते, जो होता गया उदासी हो। यह हाथ जुड़े, यह शीश झुका, यह देह थकी, यह बैठ गया, कुमुदिनि की कलियों पर प्यारे चढ़कर आवे मुख-चन्द नया।

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