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दिल कूँ लगती है दिलरुबा की अदा जी में बसती है ख़ुश अदा की अदा गरचे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले क़त्‍ल करती है मीरज़ा की अदा...

रखता हूँ शम्‍मे-आह सुख़न के फि़राक़ में हाजत नहीं चिराग की मेरे रवाक़ में आब-ए-हयात-ए-वस्‍ल सूँ सीने के सर्द कर जलता हूँ रात-देस पिया तुझ फि़राक़ में...

मुद्दत हुई सजन ने दिखाया नहीं जमाल दिखला अपस के क़द कूँ किया नईं मुझे निहाल यक बार देख मुझ तरफ़ अय ईद—ए— आशिक़ाँ तुझ अब्रुआँ की याद सूँ लाग़िर हूँ ज्यूँ हिलाल...

तुझ लब की सिफ़त लाल-ओ-बदख़्शाँ सों कहूँगा जादू हैं तेरे नैन ग़ज़ालाँ सों कहूँगा दी बादशही हक़ ने तुझे हुस्‍न नगर की यो किश्‍वर-ए-ईराँ में सुलेमाँ सों कहूँगा...

ज्‍यूँ गुल शगुफ़्ता रू हैं सुख़न के चमन में हम ज्‍यूँ शम्‍अ सर बुलंद हैं हर अंजुमन में हम हम पास आके बात 'नज़ीरी' की मत कहो रखते नहीं नज़ीर अपस की सुख़न में हम...

तुझ मुख उपर हे रंग-ए-शराब-ए-अयाग़-ए-गुल तेरी ज़ुलफ़ है हल्‍क़ए-दूद-ए-चिराग़-ए-गुल माशूक़ कूँ ज़हर नहीं आशिक़ की आह सूँ बुझता नहीं है बाद-ए-सबा सूँ चिराग़-ए-गुल...

किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता—अहिस्ता के आतिश गुल को करती है गुलाब आहिस्ता—आहिस्ता वफ़ादारी ने दिलबर की बुझाया आतिश—ए—गुल कूँ के गर्मी दफ़्अ करता है गुलाब आहिस्ता—आहिस्ता...

आज दिसता है हाल कुछ का कुछ क्‍यूँ न गुज़रे ख़याल कुछ का कुछ दिल-ए-बेदिल कूँ आज करती है शोख़ चंचल की चाल कुछ का कुछ...

तुझ मुख पे जो इस ख़त का अंदाज़ा हुआ ताज़ा अब हुस्‍न के दीवाँ का शीराज़ा हुआ ताज़ा फूलाँ ने अपस का रंग ईसार किया तुझ पर तुझ मुख पे जब ऐ मोहन ये ग़ाज़ा हुआ ताज़ा...

जो कोई समझा नहीं उस मुख के आँचल के मआनी कूँ वो क्‍यूँ बूझे कहो उस शोख़ चंचल के मआनी कूँ करें गर बहस उस अँखियाँ के जादू की सहर साज़ाँ न पहुँचे कोई बारीकी में काजल के मआनी कूँ...

गरचे तन्‍नाज़ यार-ए-जानी है माया-ए-ऐश-ए-जाविदानी है याद करती है ख़त कूँ ज़ुल्‍फ़-ए-सनम काम हिंदू का बेदबानी है...

रूह बख़्शी है काम तुझ लब का दम—ए—ईसा है नाम तुझ लब का हुस्न के ख़िज़्र ने किया लबरेज़ आब—ए—हैवाँ सूँ जाम तुझ लब का...

हुआ तू ख़ुसरव-ए-आलम सजन! शीरीं मक़ाली में आयाँ हैं बद्र के मा'नी तेरी साहब-कमाली में जो कैफि़यत सियहमस्‍ती की तुझ अँखियाँ में है ज़ालिम नहीं वो रंग वो मस्‍ती शराब-ए-पुर्तग़ाली में...

चलने मिनी ऐ चंचल हाती कूँ लजावे तूँ बेताब करे जग कूँ जब नाज़ सूँ आवे तूँ यकबारगी हो ज़ाहिर बेताबिए-मुश्‍ताक़ाँ जिस वक्‍त़ कि ग़म्‍ज़े सूँ छाती कूँ छुपावे तूँ...

सियहरूई न ले जा हश्र में दुनिया-ए-फ़ानी सूँ सिपहनामे कूँ धो ऐ बेखबर अंझुवाँ के पानी सूँ शब-ए-ग़म रोज़-ए-इशरत सूँ बदल होवे अगर देखे तिरी जानिब वो महर-ए-ज़र्रापरवर महरबानी सूँ...

जो कुई हर रंग में अपने कूँ शामिल कर नहीं गिनते हमन सब आक़िलाँ में उस कूँ आक़िल कर नहीं गिनते मुदर्रिस मदरिसे में गर न बोले दर्स दर्शन का तो उसकूँ आशिक़ाँ उस्‍ताद-ए-कामिल कर नहीं गिनते...

गुज़र है तुझ तरफ़ हर बुलहवस का हुआ धावा मिठाई पर मगस का अपस घर में रक़ीबां को न दे बार चमन में काम क्‍या है ख़ार-ओ-ख़स का...

तुझ मुख का रंग देख कँवल जल में जल गए तेरी निगाह-ए-गर्म सूँ गुल गल पिघल गए हर इक कूँ काँ है ताब जो देखे तेरी निगाह शेराँ तेरी निगाह की दहशत सूँ टल गए...

देखे सूँ तुझ लबाँ के उपर रंग-ए-पान आज चूना हुए हैं लाला रूख़ाँ के पिरान आज निकला है बेहिजाब हो बाज़ार की तरफ़ हर बुलहवस की गर्म हुई है दुकान आज...

क्‍यूँ न होवे इश्‍क सूँ आबाद सब हिंदोस्‍ताँ हुस्‍न की देहली का सूबा है मुहम्‍मद यार ख़ाँ पेच-ओ-ताब-ए-बेदिलाँ इस वक्‍त़ पर बेजा नहीं लटपटी दस्‍तार सूँ आता है वो नाज़ुक मियाँ...

उस शाह-ए-नो ख़ताँ कूँ हमारा सलाम है जिसके नगीन-ए-लब का दो आलम में नाम है सरशार-ए-इन्बिसात है उस अंजुमन मिनीं जिसकूँ ख़याल तेरी अँखाँ का मदाम है...

दिल को लगती है दिलरुबा की अदा जी में बसती है खुश-अदा की अदा गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा...

है क़द तिरा सरापा मा'नी-ए-नाज़ गोया पोशीदा दिल में मेरे आता है राज़ गोया मा'नी तरफ़ चल्या है सूरत सूँ यूँ मिरा दिल सूरत सिती चल्‍या है काबे जहाज़ गोया...

दिल को गर मरतबा हो दरपन का मुफ़्त है देखना सिरीजन का जामा ज़ेबाँ कूँ क्‍यूँ तजूँ कि मुझे घेर रखता है दूर दामन का...

छुपा हूँ मैं सदा-ए-बांसली में कि ता जाऊँ परी रू की गली में न थी ताक़त मुझे आने की लेकिन बा ज़ोर-ए-आह पहूँचा तुझ गली में...

क़रार नईं है मिरे दिल कूँ ऐ सजन तुझ बिन हुई है दिल में मिरे आह शो'ला ज़न तुझ बिन शिताब बाग़ में आ ऐ गुल-ए-बहिश्‍ती रू कि बुलबुलां कूँ जहन्‍नुम हुआ चमन तुझ बिन...

हर गुनाह-ए-शोख़-ओ-सरकश दुश्‍ना-ए-ख़ूँरेज़ है तेग़ इस अबरू की हरदम मारने कूँ तेज़ है इश्‍क़ के दावे में इसकी बात रखती है असास सुंबल-ए-ज़ुल्‍फ़-ए-परी सूँ जिसकूँ दस्‍त आवेज़ है...

अजब नहीं जो करे दिल में शेख़ की तासीर अगर मुक़द्दमए-इश्‍क़ कूँ करूँ तहरीर जुनून-ए-इश्‍क़ हुआ इस क़दर ज़मीं को मुहीत कि पारसा कूँ हुई मौज-ए-बोरिया ज़ंजीर...

सजन में है शुआर-ए-आशनाई न हो क्‍यूँ दिल शिकार-ए-आशनाई सनम तेरी मुरव्‍वत पे नज़र कर हुआ हूँ बेक़रार-ए-आशनाई...

चाहो कि पी के पग तले अपना वतन करो अव्‍वल अपस कूँ अजज़ में नक्‍श़-ए-चरन करो हे गुलरुख़ाँ कूँ ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-आशिक़ाँ दाग़ाँ सिती दिलाँ कूँ उसके चमन करो...

तुझ बेवफ़ा के संग सूँ है पारा-पारा दिल रेज़श में तुझ जफ़ा सूँ है मिस्‍ल-ए-सितारा दिल लर्जा़ है तब सूँ रा'शा-ए-सीमाब की नमत जब सूँ तिरी पलक का किया है नज़ारा दिल...

याद करना हर घड़ी उस यार का है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नहीं तिश्नालब हूँ शर्बत-ए-दीदार का ...

हरगिज़ तू न ले साथ रक़ीब-ए-दग़ली कूँ मत राह दे खि़लवत मिनीं ऐसे ख़लाली कूँ तेरे लब-ए-याक़ूत उपर ख़त-ए-ख़फ़ी देख ख़त्तात-ए-जहाँ नस्‍ख़ किये ख़त-ए-जली कूँ...

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़सार का है मुताला मत्ला—ए—अनवार का बुलबुल—ओ—परवाना करना दिल के तईं काम है तुझ चेह्रा—ए—गुलनार का...

मुफ़्लिसी सब बहार खोती है मर्द का एतिबार खोती है क्‍यूँ कि हासिल हो मुझकूँ जमीयत ज़ुल्‍फ़ तेरी क़रार खोती है...

तुझ लब की सिफ़्त लाल—ए—बदख़्शाँ सूँ कहूँगा जादू हैं तेरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा दी बाद शाही हक़ ने तुझे हुस्न नगर की यूँ किश्वर—ए—ईराँ में सुलेमाँ सूँ कहूँगा...

यो तिल तुझ मुख के काबे में मुझे अस्‍वद-ए-हजर दिसता ज़नख़ दाँ में तिरे मुझ चाह-ए-ज़मज़म का असर दिसता परीशाँ सामरी का दिल तिरी जुल्‍फ़-ए-तिलिस्‍मी में जुमुर्रुद रंग यो तिल मुझ कूँ सहर-ए-बाख़तर दिसता...

मुद्दत के बाद आज किया जूँ अदा सूँ बात खिलने सूँ उस लबाँ के हुआ हल्‍ल-ए-मुश्किलात देखे सूँ आज मुझ पे शबाँ रोज नेक है वो ज़ुल्‍फ़-ओ-मुख कि जिस सूँ इबारत है दिन-ओ रात...

किया हूँ जब सूँ वादा शाह-ए-ख़ूबाँ की ग़ुलामी का अलम बरपा हुआ है तब सूँ मेरी नेकनामी का उसे दुश्‍वार है जग में निकलना ग़‍म के फाँदे सूँ जो कुई देखा है तेरे बर मिनीं जामा दो दवामी का...

सुनावे मुजकूँ गर कुई मेहरबानी सूँ सलाम उसका कहाऊँ आख़िर-दम लग बा जाँ मिन्‍नत ग़ुलाम उसका अगरचे हस्‍ब ज़ाहिर में है फ़ुर्क़त दरम्‍याँ लेकिन तसव्वुर दिल में मेरे जल्‍वागर है सुब्‍ह-ओ-शाम उसका...