अजब नहीं जो करे दिल में शेख़ की तासीर
अजब नहीं जो करे दिल में शेख़ की तासीर अगर मुक़द्दमए-इश्‍क़ कूँ करूँ तहरीर जुनून-ए-इश्‍क़ हुआ इस क़दर ज़मीं को मुहीत कि पारसा कूँ हुई मौज-ए-बोरिया ज़ंजीर ज़बान-ए-क़ाल नहीं तिफ़्ल-ए-अश्‍क कूँ लेकिन ज़बान-ए-हाल सूँ करते हैं इश्‍क़ की तक़रीर सफ़े पे चेहरा-ए-उश्‍शाक़ के मुसव्विर-ए-इश्‍क़ जिगर के ख़ूँ सों लिखा तिफ़्ल-ए-अश्‍क की तस्‍वीर गली सूँ नेही की क्‍यूँ जा सकूँ 'वली' बाहर हुई है ख़ाक परी रू की रह की दामनगीर

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