चाहो कि पी के पग तले अपना वतन करो
चाहो कि पी के पग तले अपना वतन करो अव्‍वल अपस कूँ अजज़ में नक्‍श़-ए-चरन करो हे गुलरुख़ाँ कूँ ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-आशिक़ाँ दाग़ाँ सिती दिलाँ कूँ उसके चमन करो साबित हो आशिक़ाँ में जला जो पतंग वार तार-ए-निगाह-ए-शम्‍अ सूँ उसका कफ़न करो गर आरज़ू है दिल में हम आगोशिए-सनम अँसुआँ सूँ अपने सेज जर फ़र्श-ए-चमन करो चाहो कि हो 'वली' के नमन जग में दूरबीं अँखियाँ में सुरमा पीव की ख़ाक-ए-चरन करो

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