छुपा हूँ मैं सदा-ए-बांसली में
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बांसली में कि ता जाऊँ परी रू की गली में न थी ताक़त मुझे आने की लेकिन बा ज़ोर-ए-आह पहूँचा तुझ गली में अयाँ है रंग की शोख़ी सूँ ऐ शोख़ बदन तेरा क़बा-ए-संदली में जो है तेरे दहन में रंग-ओ-ख़ूबी कहाँ ये रंग, ये ख़ूबी कली में किया ज्‍यूँ लफ़्ज में मा'नी सिरीजन मुक़ाम अपना दिल-ओ-जान-ए-'वली' में

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