दिल को गर मरतबा हो दरपन का
दिल को गर मरतबा हो दरपन का मुफ़्त है देखना सिरीजन का जामा ज़ेबाँ कूँ क्‍यूँ तजूँ कि मुझे घेर रखता है दूर दामन का ऐ ज़बाँ कर मदद कि आज सनम मुंतजिऱ है बयान-ए-रौशन का आईना तुझसे होके हमज़ानू ग़ैरत अफ़्ज़ा हुआ है गुलशन का अम्‍न में तुझ निगह सूँ हैं बेदार ख़ौफ़ नईं मुफ्लि़सों को रहज़न का दिल-ए-सदपारा तुझ पलक सूँ है बंद खि़र्का़ दोज़ी है काम सोज़न का तुझ निगह सूँ ब शक्‍ल शान-ए-असल दिल हुआ घर हज़ार रोज़न का टुक 'वली' की तरफ़ निगाह करो सुबह सूँ मुंतजिऱ है दर्शन का

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