तुझ लब की सिफ़्त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
तुझ लब की सिफ़्त लाल—ए—बदख़्शाँ सूँ कहूँगा जादू हैं तेरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा दी बाद शाही हक़ ने तुझे हुस्न नगर की यूँ किश्वर—ए—ईराँ में सुलेमाँ सूँ कहूँगा तारीफ़ तेरे क़द की अलिफ़वार—ए—सदी जिन जा सर्व—ओ—गुलिस्ताँ को ख़ुश इल्हाँ सूँ कहूँगा मुझ पर न करो ज़ुल्म तुम अय लैला—ओ—ख़ूबाँ मजनूँ हूँ तेरे ग़म को बियाबाँ सों सूँ कहूँगा देखा हूँ तुझे ख़्वाब में अय माया—ए—ख़ूबी इस ख़्वाब को जा यूसुफ़—ए—किन्आँ सूँ कहूँगा जलता हूँ शब—ओ—रोज़ तेरे ग़म में अय सजन ! यह सोज़ तेरा मश्अल—ए—सोज़ाँ सूँ कहूँगा ज़ख़्मी किया है मुझे तेरी पलकों की अनी ने यह ज़ख्म तेरा ख़ंजर—ए—भालाँ सूँ कहूँगा यक नुक़्ता तेरे सफ़्हा—ए—रुख़ पर नहीं बे—जा ! इस मुख को तेरे सफ़्हा—ओ—क़ुरआँ सूँ कहूँगा बे—सब्र न हो अय वली ! इस दर्द सूँ हरगिज़ जलता हूँ तेरे दर्द में दरमाँ सूँ कहूँगा

Read Next