Wali Mohammed Wali
Wali Deccani
( 1667 - 1707 )

Wali Muhammad Wali (Hindi: वली मोहम्मद वली), also known as Wali Deccani, Wali Gujarati and Wali Aurangabadi, was a classical Urdu poet from South Asia. He is known as the father of Urdu poetry, being the first established poet to have composed Ghazals in Urdu language and compiled a divan (a collection of ghazals where the entire alphabet is used at least once as the last letter to define the rhyme pattern). More

सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो दर्द-मंदाँ कूँ कुढ़ाया न करो हक़-परस्ती का अगर दावा है बे-गुनाहाँ कूँ सताया न करो...

तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ सर उपर उस के बगूला ताज-ए-सुल्तानी हुआ क्यूँ न साफ़ी उस कूँ हासिल हो जो मिस्ल-ए-आरसी अपने जौहर की हया सूँ सर-ब-सर पानी हुआ...

याद करना हर घड़ी उस यार का है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं तिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का...

सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता छुपी बातें अपस दिल की सुना आहिस्ता आहिस्ता ग़रज़ गोयाँ की बाताँ कूँ न ला ख़ातिर मनीं हरगिज़ सजन इस बात कूँ ख़ातिर में ला आहिस्ता आहिस्ता...

शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का क्या हक़ीक़ी ओ क्या मजाज़ी का हर ज़बाँ पर है मिस्ल-ए-शाना मुदाम ज़िक्र तुझ ज़ुल्फ़ की दराज़ी का...

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है तलब में हूँ तमन्ना की क़सम है सरापा नाज़ है तू ऐ परी-रू मुझे तेरे सरापा की क़सम है...

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे तिरा मुख देख कनआँ याद आवे तिरे दो नैन जब देखूँ नज़र भर मुझे तब नर्गिसिस्ताँ याद आवे...

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के ज़ख़्मी हैं मोहिब्बाँ तिरी शमशीर-ए-जफ़ा के हर पेच में चीरे के तिरे लिपटे हैं आशिक़ आलम के दिलाँ बंद हैं तुझ बंद-ए-क़बा के...

वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा ख़ूबी में गुल-रुख़ाँ सूँ मुम्ताज़ है सरापा ऐ शोख़ तुझ नयन में देखा निगाह कर कर आशिक़ के मारने का अंदाज़ है सरापा...

मुफ़्लिसी सब बहार खोती है मर्द का ए'तिबार खोती है क्यूँके हासिल हो मुज को जमइय्यत ज़ुल्फ़ तेरी क़रार खोती है...