है क़द तिरा सरापा मा'नी-ए-नाज़ गोया
है क़द तिरा सरापा मा'नी-ए-नाज़ गोया पोशीदा दिल में मेरे आता है राज़ गोया मा'नी तरफ़ चल्या है सूरत सूँ यूँ मिरा दिल सूरत सिती चल्‍या है काबे जहाज़ गोया हर इक निगह में तेरी है नग़मा-ए-मुहब्बत हर तार तुझ निगह का है तार-ए-साज़ गोया ऐ कि़ब्‍ला रू हमेशा मेहराब में भवाँ की करती हैं तेरी पलकाँ मिलकर नमाज़ गोया तेरी कमर मुसव्विर चितरा है इस अदा सूँ करता है सर्फ़ उसमें नाज़-ओ-नियाज़ गोया तुझ जुल्‍फ़ कूँ जो बोल्‍या हमदोश मिसरा-ए-क़द रखता है तुझ बराबर फ़िक्र-ए-दराज़ गोया वो क़ातिल-ए-सितमगर आता है यूँ 'वली' पर जल्‍दी सूँ सैद ऊपर आता है बाज़ गोया

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