हरगिज़ तू न ले साथ रक़ीब-ए-दग़ली कूँ
हरगिज़ तू न ले साथ रक़ीब-ए-दग़ली कूँ मत राह दे खि़लवत मिनीं ऐसे ख़लाली कूँ तेरे लब-ए-याक़ूत उपर ख़त-ए-ख़फ़ी देख ख़त्तात-ए-जहाँ नस्‍ख़ किये ख़त-ए-जली कूँ ऐ ज़ुहरा जबीं किशन तेरे मुख की कली देख गाता है हर इक सुबह में उठ रामकली कूँ ऐ महजबीं महर-ए-लक़ा तेरी जबीं पर करता हूँ हर इक दम मिनीं दम नाद-ए-अली कूँ मैं दिल कूँ तेरे हाथ दिया रोज़-ए-अज़ल सूँ मत दिल सूँ बिसार अपने महब्‍बे-अज़ली कूँ नहीं मंसब-ओ-जागीर नहीं रोज़ वज़ीफ़ा हर रोज़ तेरा नाम वज़ीफ़ा है 'वली' कूँ

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