रखता हूँ शम्मे-आह सुख़न के फि़राक़ में
रखता हूँ शम्‍मे-आह सुख़न के फि़राक़ में हाजत नहीं चिराग की मेरे रवाक़ में आब-ए-हयात-ए-वस्‍ल सूँ सीने के सर्द कर जलता हूँ रात-देस पिया तुझ फि़राक़ में सुनकर ख़बर सबा सूँ गरेबाँ कूँ चाक कर निकले हैं गुल चमन सूँ तेरे इश्तियाक़ में ऐ दिल अक़ीक-ए-लब के ये आए हैं मुश्‍तरी मोती न बूझ ज़ुहरा जबीं के बलाक़ में तेरे सुख़न के ऩग्‍मा-ए-रंगीं कूँ सुन 'वली' डूबा अरक़ के बीच 'इराक़ी' इराक़ में

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