उस शाह-ए-नो ख़ताँ कूँ हमारा सलाम है
उस शाह-ए-नो ख़ताँ कूँ हमारा सलाम है जिसके नगीन-ए-लब का दो आलम में नाम है सरशार-ए-इन्बिसात है उस अंजुमन मिनीं जिसकूँ ख़याल तेरी अँखाँ का मदाम है जिस सरज़मीं में तेरी भँवाँ का बयाँ करूँ ख़ूबी हिलाल-ए-चर्ख़ वहाँ नातमाम है जब लग है तुझ गली में रक़ीब-ए-सियाह रू तब लग हमारे हक़ में हर इक सुब्‍ह शाम है तनहा न बंद इश्‍क़ में तेरी हवा 'वली' ये ज़ुल्‍फ़-ए-हल्‍क़ादार दो आलम का दाम है

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