मुद्दत के बाद आज किया जूँ अदा सूँ बात
मुद्दत के बाद आज किया जूँ अदा सूँ बात खिलने सूँ उस लबाँ के हुआ हल्‍ल-ए-मुश्किलात देखे सूँ आज मुझ पे शबाँ रोज नेक है वो ज़ुल्‍फ़-ओ-मुख कि जिस सूँ इबारत है दिन-ओ रात मीठी तिरी यो बात अहे नित नबात रेज़ गोया रखे हैं लब में तिरे माया-ए-नबात ज़ुल्‍मात सूँ निकल के जहाँ में अयाँ अछे गर हुक्‍म लेवे लब सूँ तिरे चश्‍मा-ए-हयात तुझ नाज़ होर अदा सूँ मिरी ये है अर्ज़ ग़र्ज़ या ऐन-ए-इल्तिफ़ात हो या हुक्‍म-ए-इल्तिफ़ात तब सूँ उठा है दिल सूँ मिरे ग़ैर का ख़याल तेरा ख़याल जब सूँ हुआ है मिरे संगात उस वक्‍त़ मुझको ऐश-ए-दो आलम मिले 'वली' जिस वक्‍त़ बेहिजाब करूँ प्‍यू संगात बात

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