ज्यूँ गुल शगुफ़्ता रू हैं सुख़न के चमन में हम
ज्‍यूँ गुल शगुफ़्ता रू हैं सुख़न के चमन में हम ज्‍यूँ शम्‍अ सर बुलंद हैं हर अंजुमन में हम हम पास आके बात 'नज़ीरी' की मत कहो रखते नहीं नज़ीर अपस की सुख़न में हम हैं दास्‍ताँ बरा मनीं मुझ याद कई हज़ार उस्‍ताद बुलबुलाँ के हैं हर यक चमन में हम ख़ूबाँ जगत के जीव सूँ मिलते हैं हम सिती कामिल हुए हैं बस कि मुहब्‍बत के फ़न में हम उस शोख़ शौला रंग सूँ जब से लगन लगी जलते हैं तब सूँ शो'ला नमत उस लगन में हम यक बार हँस के बोल सनम नईं तो हश्र लग ज्यूँ बर्क़-ए-बेक़रार रहेंगे कफ़न में हम हर चंद जग के बख्‍त़ सियाहों में हैं वले काजल हो जा बसे हैं सजन के नयन में हम फ़रहाद तब सूँ तेशा नमन सर किया तले बाँधे हैं जब सूँ जीव कूँ शीरीं वचन में हम दो जग हुए हैं दिल सूँ फ़रामोश ऐ 'वली' रखते हैं जब सूँ याद सिरीजन के मन में हम

Read Next