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यों मत छोड़ दो मुझे, सागर, कहीं मुझे तोड़ दो, सागर, कहीं मुझे तोड़ दो! मेरी दीठ को और मेरे हिये को,...

कवि का है भाग यही आग से आग तक जलना गलना गलाना मन्दिर जिसका भी हो...

सुनो मैं ने कहीं हवाओं को बाँध कर एक घर बनाया है फूलों की गन्ध से उस की दीवारों पर मैं तुम्हारा नाम लिखता हूँ...

देर तक देखा हम ने नदी का बहना। पर नहीं आया हमें कुछ भी कहना।...

चाहता हूँ कि मुझे मैं एक दूसरे साँचे में ढालूँ। पर भट्ठी तो तुम्हारी है। इस पुरानी मूर्ति को...

रण-क्षेत्र जाने से पहले सैनिक! जी भर रो लो! अन्तर की कातरता को आँखों के जल से धो लो! मत ले जाओ साथ जली पीड़ा की सूनी साँसें, मत पैरों का बोझ बढ़ाओ ले कर दबी उसाँसें।...

ऐसा क्यों हो कि मेरे नीचे सदा खाई हो जिस में मैं जहाँ भी पैर टेकना चाहूँ भँवर उठें, क्रुद्ध;...

जहाँ सुख है वहीं हम चटक कर टूट जाते हैं बारम्बार जहाँ दुख है...

मैं सभी ओर से खुला हूँ वन-सा, वन-सा अपने में बन्द हूँ शब्द में मेरी समाई नहीं होगी मैं सन्नाटे का छन्द हूँ।...

एक दिन यह राह पकड़ूँगा सदा यह जानता था। पर अभी कल भी मुझे सूझा नहीं था कि वह दिन...

दीखने को तो कल दिखी थी आग पर क्या जाने उस के करने थे फेरे या उस में झोंकना था सुहाग!...

रोज़ सवेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूँ- क्यों कि रोज़ शाम को मैं थोड़ा-सा भविष्य में मर जाता हूँ।...

पहले यह देश बड़ा सुन्दर था। हर जगह मनोरम थी। एक-एक सुन्दर स्थल चुन कर हिन्दुओं ने तीर्थ बनाये...

वे कहते गये हाँ, हाँ, और फूल-हार उन पर चढ़ते गये; पाँवड़ों और वन्दनवारों की...

प्यार अकेले हो जाने का एक नाम है यह तो बहुत लोग जानते हैं पर प्यार अकेले छोड़ना भी होता है इसे जो...

प्रच्छन्न गगन का वक्ष चीर जा रहा अकेला उड़ा कीर, जीवन से मानो कम्प-युक्त आरक्त धार का तीक्ष्ण तीर! प्रकटित कर उर की अमिट साध, पर कर जीवन की गति अबाध, कृषि-हरित रंग में दृश्यमान उत्क्षिप्त अवनि का प्राण-ह्लाद!...

दीप बुझेगा पर दीपक की स्मृति को कहाँ बुझाओगे? तारें वीणा की टूटेंगी-लय को कहाँ दबाओगे? फूल कुचल दोगे तो भी सौरभ को कहाँ छिपाओगे? मैं तो चली चली, पर अब तुम क्योंकर मुझे भुलाओगे?...

कभी मैं चाहता हूँ कभी पहचान लेता हूँ कभी मैं जानता हूँ चाहना-पहचानना कुछ भी नहीं बा की- तुम्हें मैं ने पा लिया है। कभी बदली की तहों में डूब जाता है सुलगता लाल दिन का,...

चाबुक खाए भागा जाता सागर-तीरे मुँह लटकाए...

यह अन्तर मन यह बाहर मन यह बीच कलह की -नहीं, जड़ नहीं!-मथानी।...

मानव की अन्धी आशा के दीप! अतीन्द्रिय तारे! आलोक-स्तम्भ सा स्थावर तू खड़ा भवाब्धि किनारे! किस अकथ कल्प से मानव तेरी धु्रवता को गाते : हो प्रार्थी प्रत्याशी वे उसको हैं शीश नवाते।...

ओ मूर्त्ति! वासनाओं के विलय, अदम आकांक्षा के विश्राम! वस्तु-तत्त्व के बंधन से छुटकारे के...

उँगलियाँ बुनती हैं लगातार रंग-बिरंगे ऊनों से हाथ, पैर, छातियाँ, पेट दौड़ते हुए घुटने, मटकते हुए कूल्हे :...

अब आप ही सोचिए कितनी सम्भावनाएँ हैं -कि मैं आप पर हँसूँ और आप मुझे पागल करार दे दें;...

तुम सोये नींद में अधमुँदे हाथ सहसा हुए...

एक दिन जब सिवा अपनी व्यथा के कुछ याद करने को नहीं होगा- क्यों कि कृतियाँ दूसरों के याद करने के लिए हैं : एक दिन जब...

क्या घृणा की एक झौंसी साँस भी छू लेगी तुम्हारा गात- प्यार की हवाएँ सोंधी यों ही बह जाएँगी?...

खोज़ में जब निकल ही आया सत्य तो बहुत मिले। कुछ नये कुछ पुराने मिले कुछ अपने कुछ बिराने मिले ...

वे सब बातें झूठ भी हो सकती थीं। लेकिन यों तो सच भी हो सकती थीं।...

लेकिन फिर आऊँगा मैं भी लिये झोली में अग्निबीज धारेगी जिसको धरा ताप से होगी रत्नप्रसू।...

सारे इस सुनहले चँदोवे से पत्ता कुल एक झरा पर उसी की अकिंचन झरन के...

पहली बार जब दिन-दोपहर में शराब पी थी तब हमजोलियों से ठिठोलियाँ करते सोचा था :...

घिर आयी थी घटा नहीं पर बरसी चली गयी। आँखे तरसी थीं भरी भी नहीं छली गयीं। दमकी थी दामिनी परेवे...

शायद तुम सच ही कहते थे-वह थी असली प्रेम-परीक्षा! मेरे गोपनतम अन्तर के रक्त-कणों से जीवन-दीक्षा! पीड़ा थी वह, थी जघन्य भी, तुम थे उस के निर्दय दाता! तब क्यों मन आहत होकर भी तुम पर रोष नहीं कर पाता?...

कल जो जला रहे थे दीप आज संलग्न-भाव से माँज रहे हैं फर्श कि कैसे दा ग तेल के छूटें। कल घर में दीवाली थी,...

कंकड़ से तू छील-छील कर आहत कर दे बाँध गले में डोर, कूप के जल में धर दे। गीला कपड़ा रख मेरा मुख आवृत कर दे- घर के किसी अँधेरे कोने में तू धर दे।...

ले लो फूल टटका देव-खग 4की चोंच से : अब भले झुलस मुरझा जाए...

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ। उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ। ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा? पर कोई है जो उसे बदल देगा,...

चाँद तो थक गया, गगन भी बादलों से ढक गया बन तो बनैला है-अभी क्या ठिकाना कितनी दूर तक फैला है! अन्धकार। घनसार। अरे पर देखो तो वो पत्तियों में...

बहुत दिनों के बाद आज ऐसा हुआ है कि उस एक मेरे जाने हुए आलोक ने मुझे छुआ है।...