सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया सत्य तो बहुत मिले। कुछ नये कुछ पुराने मिले कुछ अपने कुछ बिराने मिले कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले। कुछ ने लुभाया कुछ ने डराया कुछ ने परचाया- कुछ ने भरमाया- सत्य तो बहुत मिले खोज़ में जब निकल ही आया। कुछ पड़े मिले कुछ खड़े मिले कुछ झड़े मिले कुछ सड़े मिले कुछ निखरे कुछ बिखरे कुछ धुँधले कुछ सुथरे सब सत्य रहे कहे, अनकहे। खोज़ में जब निकल ही आया सत्य तो बहुत मिले पर तुम नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम मोम के तुम, पत्थर के तुम तुम किसी देवता से नहीं निकले: तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले मेरे ही रक्त पर पले अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती मेरी अशमित चिता पर तुम मेरे ही साथ जले। तुम- तुम्हें तो भस्म हो मैंने फिर अपनी भभूत में पाया अंग रमाया तभी तो पाया। खोज़ में जब निकल ही आया, सत्य तो बहुत मिले- एक ही पाया।

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