फिर आऊँगा मैं भी
लेकिन फिर आऊँगा मैं भी लिये झोली में अग्निबीज धारेगी जिसको धरा ताप से होगी रत्नप्रसू। कवि गाता है : अनुभव नहीं न ही आशा-आकांक्षा : गाता है वह अनघ सनातन जयी।

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