एक प्रश्न / अरी ओ करुणा प्रभामय
क्या घृणा की एक झौंसी साँस भी छू लेगी तुम्हारा गात- प्यार की हवाएँ सोंधी यों ही बह जाएँगी? एक सूखे पत्ते की ही खड़-खड़ बाँधेगी तुम्हारा ध्यान- लाख-लाख कोंपलों की मृदुल गुजारें अनसुनी रह जाएँगी? चौखटे की दीमक का उद्यम अनवरत देख तुम खिड़की से बाहर न झाँकोगे : पक्षियों की बीटों का क्या : उपयोग होगा, इसी चिन्ता में जमीन को कुरेदते- ऊपर का मुक्त-मुक्त-मुक्त आकाश नहीं ताकोगे?

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