दोनों सच हैं
वे सब बातें झूठ भी हो सकती थीं। लेकिन यों तो सच भी हो सकती थीं। बात यह है कि अनुभूतियाँ बातें नहीं हैं और असल में विचार भी शब्दों के फन्दे में आते नहीं हैं। अपनी-अपनी जगह दोनों सच हैं या होंगे; पर सच क्या है, यह सवाल हम भरसक उठाते नहीं हैं और टकरा जायँ तो पतियाते नहीं हैं।

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