पहली बार जब शराब
पहली बार जब दिन-दोपहर में शराब पी थी तब हमजोलियों से ठिठोलियाँ करते सोचा था : कितने ख़तरनाक होते होंगे वे लोग जो रात में अकेले बैठ कर पीते होंगे? आज चाँदनी रात में पहाड़ी काठघर में अकेला बैठा ठिठुरी उँगलियों में ओस-नम प्याला घुमाते हुए सोचता हूँ : इस प्याले में चाँद की छाया है चीड़ों की सिहरन झर चुके फूलों की अनभूली महक बीते बसन्तों की चिड़ियों की चहक है; इस को-और इस के साथ अपनी (अब जैसी भी है) किस्मत को सराहिए : और कोई हमप्याला भला अपने को क्यों चाहिए?

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