वह नकारता रहे
वे कहते गये हाँ, हाँ, और फूल-हार उन पर चढ़ते गये; पाँवड़ों और वन्दनवारों की सुरंग-सी में वे निर्द्वन्द्व बढ़ते गये। सुखी रहें वे अपनी हाँ में। लेकिन जिस का नकार उस की नियति है वह भी नकारता रहे निर्द्वन्द्व, निरनुताप। बार-बार-जब भी पूछा जाय! वह हारता रहे, टूटता हुआ इतिहास की तिकठी पर निर्विकार- वह नकारता रहे।

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