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सोचा करता बैठ अकेले, गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!...

सुदूर शुभ्र स्वप्न सत्य आज है, स्वदेश आज पा गया स्वराज है, महाकृत्घन हम बिसार दें अगर कि मोल कौन आज का गया चुका।...

अरे है वह वक्षस्थल कहाँ? ऊँची ग्रीवा कर आजीवन चलने का लेकर के भी प्रण मन मेरा खोजा करता है...

फैलाया था जिन्हें गगन में, विस्तृत वसुधा के कण-कण में, उन किरणों के अस्ताचल पर पहुँच लगा है सूर्य सँजोने! साथी, साँझ लगी अब होने!...

मुँह क्यों आज तम की ओर? कालिमा से पूर्ण पथ पर चल रहा हूँ मैं निरंतर, चाहता हूँ देखना मैं इस तिमिर का छोर!...

आज मुझसे बोल, बादल! तम भरा तू, तम भरा मैं, गम भरा तू, गम भरा मैं, आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल!...

संस्रिति के विस्तृत सागर में सपनो की नौका के अंदर दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर बहता जाता, मैं सो जाता ।...

है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है? कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था, भावना के हाथ ने जिसमें वितानो को तना था, स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,...

निर्ममता भी है जीवन में! हो वासंती अनिल प्रवाहित करता जिनको दिन-दिन विकसित, उन्हीं दलों को शिशिर-समीरण तोड़ गिराता है दो क्षण में!...

तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती। बंद किवाड़े कर-कर सोए सब नगरी के बासी, वक्त तुम्हारे आने का यह...

मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ। चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है?'...

जहाँ सोचा था वन के बीच मिलेंगे खिलते कोमल फूल, वहाँ क्या देख रहा हूँ आज कि छाये तीखे शूल-बबूल,...

पंगु पर्वत पर चढ़ोगे! चोटियाँ इस गिरि गहन की बात करतीं हैं गगन से, और तुम सम भूमि पर चलना अगर चाहो गिरोगे।...

आ, सोने से पहले गा लें! जग में प्रात पुनः आएगा, सोया जाग नहीं पाएगा, आँख मूँद लेने से पहले, आ, जो कुछ कहना कह डालें!...

सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने। इसीलिए क्या मैंने तुझसे साँसों के संबंध बनाए, मैं रह-रहकर करवट लूँ तू...

हा, मुझे जीना न आया! नेत्र जलमय, रक्त-रंजित, मुख विकृत, अधरोष्ठ कंपित हो उठे तब गरल पीकर भी गरल पीना न आया!...

मैं न सुख से मर सकूँगा! चाहता जो काम करना, दूर है मुझसे सँवरना, टूटते दम से विफल आहें महज मैं भर सकूँगा!...

अब घन-गर्जन-गान कहाँ हैं! कहती है ऊषा की पहली किरण लिए मुस्कान सुनहली— नहीं दमकती दामिनि का ही, मेरा भी अस्तित्व यहाँ है!...

फिर वर्ष नूतन आ गया! सूने तमोमय पंथ पर, अभ्यस्त मैं अब तक विचर, नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया।...

तिल में किसने ताड़ छिपाया? छिपा हुआ था जो कोने में, शंका थी जिसके होने में, वह बादल का टुकड़ा फैला, फैल समग्र गगन में छाया।...

मध्य निशा में पंछी बोला! ध्वनित धरातल और गगन है, राग नहीं है, यह क्रंदन है, टूटे प्यारी नींद किसी की, इसने कंठ करुण निज खोला!...

कैसे आँसू नयन सँभाले। मेरी हर आशा पर पानी, रोना दुर्बलता, नादानी, उमड़े दिल के आगे पलकें, कैसे बाँध बनालें।...

उदित संध्या का सितारा! थी जहाँ पल पूर्व लाली, रह गई कुछ रेख काली, अब दिवाकर का गया मिट तेज सारा, ओज सारा!...

उगते सूरज और चांद में जब तक है अरुणाई, हिन्द महासागर की लहरों में जबतक तरुणाई, वृद्ध हिमालय जब तक सर पर श्वेत जटाएँ बाँधे, भारत की गणतंत्र पताका रहे गगन पर छाई।...

यह व्यंग नहीं देखा जाता! निःसीम समय की पलकों पर, पल और पहर में क्या अंतर; बुद्बुद की क्षण-भंगुरता पर मिटने वाला बादल हँसता!...

तू तो जलता हुआ चला जा। जीवन का पथ नित्य तमोमय, भटक रहा इंसान भरा-भय, पल भर सही, परग भर को ही कुछ को राह दिखा जा।...

गीले बादल, पीले रजकण, सूखे पत्ते, रूखे तृण घन लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे? तुम तूफान समझ पाओगे?...

तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में,...

सुर न मधुर हो पाए, उर की वीणा को कुछ और कसो ना। मैंने तो हर तार तुम्हारे हाथों में, प्रिय, सौंप दिया है काल बताएगा यह मैंने...

हृदय भविष्य के सिंगार में लगे, दिमाग़ जान ले अतीत की रगें, नयन अतंद्र वर्तमान में जगें-- स्वदेश को सुजान एक चाहिए।...

संध्‍या सिंदूर लुटाती है! रंगती स्‍वर्णिम रज से सुदंर निज नीड़-अधीर खगों के पर, तरुओं की डाली-डाली में कंचन के पात लगाती है!...

व्याकुल आज है संसार! प्रेयसी को बाहु में भर विश्व, जीवन, काल गति से सर्वथा स्वच्छंद होकर...

गंध आती है सुमन की! किस कुसुम का श्वास छूटा? किस कली का भाग्य फूटा? लुट गयी सहसा खुशी इस कालिमा में किस चमन की?...

नहीं प्रकट हुई कुरूप क्रूरता, तुम्हें कठोर सत्य आज घूरता, यथार्थ को सतर्क हो ग्रहण करो, प्रवाह में न स्वप्न के विसुध बहो।...

कौन था वह युगल जो गलती-ठिठुरती यामिनी में जबकि कैम्ब्रिज श्रांत,विस्मृत-जड़ित होकर ...

चाँद-सितारों, मिलकर गाओ! आज अधर से अधर मिले हैं, आज बाँह से बाँह मिली, आज हृदय से हृदय मिले हैं,...

तन में ताकत हो तो आओ। पथ पर पड़ी हुई चट्टानें, दृढ़तर हैं वीरों की आनें, पहले-सी अब कठिन कहाँ है--ठोकर एक लगाओ।...

साथी, सो न, कर कुछ बात! बोलते उडुगण परस्पर, तरु दलों में मंद 'मरमर', बात करतीं सरि-लहरियाँ कूल से जल स्नात!...

अस्त रवि ललौंछ रणजीत पच्छिमी नभ; क्षितिज से ऊपर उठा सिर चलकर के एक तारा ...

श्यामा तरु पर बोलने लगी! है अभी पहर भर शेष रात, है पड़ी भूमि हो शिथिल-गात, यह कौन ओस जल में सहसा मिश्री के कण घोलने लगी!...