यह व्यंग नहीं देखा जाता
यह व्यंग नहीं देखा जाता! निःसीम समय की पलकों पर, पल और पहर में क्या अंतर; बुद्बुद की क्षण-भंगुरता पर मिटने वाला बादल हँसता! यह व्यंग नहीं देखा जाता! दोनों अपनी सत्ता में सम, किसमें क्या ज्यादा, किसमें कम? पर बुद्बुद की चंचलता पर बुद्बुद जो खुद चंचल हँसता! यह व्यंग नहीं देखा जाता! बुद्बुद बादल में अन्तर है, समता में ईर्ष्या का ड़र है, पर मेरी दुर्बलताओं पर मुझसे ज्यादा दुर्बल हँसता! यह व्यंग नहीं देखा जाता!

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