चेतावनी-२
नहीं प्रकट हुई कुरूप क्रूरता, तुम्हें कठोर सत्य आज घूरता, यथार्थ को सतर्क हो ग्रहण करो, प्रवाह में न स्वप्न के विसुध बहो। कि तुम हिए सहिष्णुता लिए रहे, कि तुम दुराव दैन्य का किए रहे, तजो पलायनी प्रवृत्ति, कादरो, बुरी प्रवंचना, उसे ’विदा’ कहो। विरुद्ध शक्तियां समक्ष आ खड़ीं, हरेक पर जवाबदेहियां बड़ी, यही, यही अभीत कर्म की घड़ी, बने तमाशबीन मत खड़े रहो।

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