संध्या सिंदूर लुटाती है
संध्‍या सिंदूर लुटाती है! रंगती स्‍वर्णिम रज से सुदंर निज नीड़-अधीर खगों के पर, तरुओं की डाली-डाली में कंचन के पात लगाती है! संध्‍या सिंदूर लुटाती है! करती सरि‍ता का जल पीला, जो था पल भर पहले नीला, नावों के पालों को सोने की चादर-सा चमकाती है! संध्‍या सिंदूर लुटाती है! उपहार हमें भी मिलता है, श्रृंगार हमें भी मिलता है, आँसू की बूंद कपोलों पर शोणित की-सी बन जाती है! संध्‍या सिंदूर लुटाती है!

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