निर्ममता भी है जीवन में
निर्ममता भी है जीवन में! हो वासंती अनिल प्रवाहित करता जिनको दिन-दिन विकसित, उन्हीं दलों को शिशिर-समीरण तोड़ गिराता है दो क्षण में! निर्ममता भी है जीवन में! जिसकी कंचन की काया थी, जिसमें सब सुख की छाया थी, उसे मिला देना पड़ता है पल भर में मिट्टी के कण में! निर्ममता भी है जीवन में! जगती में है प्रणय उच्चतर, पर कुछ है उसके भी ऊपर, पूछ उसीसे आज नहीं तू क्यों मेरे उर के आँगन में! निर्ममता भी है जीवन में!

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