फिर वर्ष नूतन आ गया
फिर वर्ष नूतन आ गया! सूने तमोमय पंथ पर, अभ्यस्त मैं अब तक विचर, नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया। फिर वर्ष नूतन आ गया! निश्चित अँधेरा तो हुआ, सुख कम नहीं मुझको हुआ, दुविधा मिटी, यह भी नियति की है नहीं कुछ कम दया। फिर वर्ष नूतन आ गया! दो-चार किरणें प्यार कीं, मिलती रहें संसार की, जिनके उजाले में लिखूँ मैं जिंदगी का मर्सिया। फिर वर्ष नूतन आ गया!

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