सुर न मधुर हो पाए, उर की वीणा को कुछ और कसो ना।
मैंने तो हर तार तुम्हारे
हाथों में, प्रिय, सौंप दिया है
काल बताएगा यह मैंने
ग़लत किया या ठीक किया है
मेरा भाग समाप्त मगर
आरंभ तुम्हारा अब होता है,
सुर न मधुर हो पाए, उर की वीणा को कुछ और कसो ना।
जगती के जय-जयकारों की
किस दिन मुझको चाह रही है,
दुनिया के हँसने की मुझको
रत्ती भर परवाह नहीं है,
लेकिन हर संकेत तुम्हारा
मुझे मरण, जीवन, कुछ दोनों
से भी ऊपर, तुम तो मेरी त्रुटियों पर इस भाँति हँसो ना।
सुर न मधुर हो पाए, उर की वीणा को कुछ और कसो ना।