तुम छेड़ो मेरी बीन कसी रसराती
तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती। बंद किवाड़े कर-कर सोए सब नगरी के बासी, वक्त तुम्हारे आने का यह मेरे राग विलासी, आहट भी प्रतिध्वनित तुम्हारी इस पर होती आई, तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती। इसके गुण-अवगुण बतलाऊँ? क्या तुमसे अनजाना? मिला मुझे है इसके कारण गली-गली का ताना, लेकिन बुरी-भली, जैसी भी, है यह देन तुम्हारी, मैंने तो सेई एक तुम्हारी थाती। तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती।

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