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कितना कुछ सह लेता यह मन! कितना दुख-संकट आ गिरता अनदेखी-जानी दुनिया से, मानव सब कुछ सह लेता है कह पिछले कर्मों का बंधन।...

प्रेयसि, याद है वह गीत? गोद में तुझको लेटाकर, कंठ में उन्मत्त स्वर भर, गा जिसे मैंने लिया था स्वर्ग का सुख जीत!...

तम ने जीवन-तरु को घेरा! टूट गिरीं इच्छा की कलियाँ, अभिलाषा की कच्ची फलियाँ, शेष रहा जुगुनूँ की लौ में आशामय उजियाला मेरा!...

युद्ध की ज्वाला जगी है। था सकल संसार बैठा बुद्धि में बारूद भरकर,— क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, मद की,...

भूल गया है क्यों इंसान! सबकी है मिट्टी की काया, सब पर नभ की निर्मम छाया, यहाँ नहीं कोई आया है ले विशेष वरदान।...

मैंने शान्ति नहीं जानी है! त्रुटि कुछ है मेरे अंदर भी, त्रुटि कुछ है मेरे बाहर भी, दोनों को त्रुटि हीन बनाने की मैंने मन में ठानी है!...

इतना भव्य देश भूतल पर यदि रहने को दास बना है, तो भारतमाता ने जन्मा पूत नहीं, कृमि-कीट जना है।...

आज मलार कहीं तुम छेड़े, मेरे नयन भरे आते हैं। तुमने आह भरी कि मुझे था झंझा के झोंकों ने घेरा, तुम मुस्काए थे कि जुन्हाई...

कोई रोता दूर कहीं पर! इन काली घड़ियों के अंदर, यत्न बचाने के निष्फल कर, काल प्रबल ने किसके जीवन का प्यारा अवलम्ब लिया हर?...

पंथ जीवन का चुनौती दे रहा है हर कदम पर, आखिरी मंजिल नहीं होती कहीं भी दृष्टिगोचर, धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच हो गई है देह भारी, कौन-सा विश्‍वास मुझको खींचता जाता निरंतर?-...

अकेलेपन का बल पहचान। शब्द कहाँ जो तुझको, टोके, हाथ कहाँ जो तुझको रोके, राह वही है, दिशा वही, तू करे जिधर प्रस्थान।...

रात आधी हो गई है! जागता मैं आँख फाड़े, हाय, सुधियों के सहारे, जब कि दुनिया स्‍वप्‍न के जादू-भवन में खो गई है!...

आक्षितिज फैली हुई मिट्टी निरन्तर पूछती है, कब कटेगा, बोल, तेरी चेतना का शाप, और तू हों लीन मुझमे फिर बनेगा शान्त ? कौन मिलनातुर नहीं है ?...

हर जगह जीवन विकल है! तृषित मरुथल की कहानी, हो चुकी जग में पुरानी, किंतु वारिधि के हृदय की प्यास उतनी ही अटल है!...

यह अरुण-चूड़ का तरुण राग! सुनकर इसकी हुंकार वीर हो उठा सजग अस्थिर समीर, उड चले तिमिर का वक्ष चीर चिड़ियों के पहरेदार काग!...

साथी, नया वर्ष आया है! वर्ष पुराना, ले, अब जाता, कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!...

नभ में दूर-दूर तारे भी! देते साथ-साथ दिखलाई, विश्व समझता स्नेह-सगाई; एकाकी पन का अनुभव, पर, करते हैं ये बेचारे भी!...

ओ अँधेरी से अँधेरी रात! आज गम इतना हृदय में, आज तम इतना हृदय में, छिप गया है चाँद-तारों का चमकता गात!...

चल बसी संध्या गगन से! क्षितिज ने साँस गहरी और संध्या की सुनहरी छोड़ दी सारी, अभी तक था जिसे थामे लगन से!...

अब खँड़हर भी टूट रहा है! गायन से गुंजित दीवारें, दिखलाती हैं दीर्घ दरारें, जिनसे करुण, कर्णकटु, कर्कश, भयकारी स्वर फूट रहा है!...

तू एकाकी तो गुनहगार। अपने पर होकर दयावान तू करता अपने अश्रुपान, जब खड़ा माँगता दग्ध विश्व तेरे नयनों की सजल धार।...

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! सोचा करता बैठ अकेले गत जीवन के सुख-दुख झेले, दर्शनकारी स्मृतियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!...

पुष्प-गुच्छ माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए। एक चला नक्षत्र गगन में और विदा की आई बेला, और बढ़ा अनजान सफ़र पर...

आज घन मन भर बरस लो! भाव से भरपूर कितने, भूमि से तुम दूर कितने, आँसुओं की धार से ही धरणि के प्रिय पग परस लो,...

मैं जीवन में कुछ न कर सका! जग में अँधियारा छाया था, मैं ज्‍वाला लेकर आया था मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका!...

नई यह कोई बात नहीं। कल केवल मिट्टी की ढ़ेरी, आज ’महत्ता’ इतनी मेरी, जगह-जगह मेरे जीवन की जाती बात कही।...

तमाम साल जानता कि तुम चले, निदाघ में जले कि शीत में गले, मगर तुम्हें उजाड़ खण्ड ही मिले, मनुष्य के लिए कलंक हारना।...

ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश से घबराकर मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि हमें पैदा क्यों किया था?...

अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं, साजन आ‌ए, सावन आया। धरती की जलती साँसों ने मेरी साँसों में ताप भरा,...

जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के!...

बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के, कहां समान वह कलम-कमान के, अचूक हैं निशान शब्द-बाण के, कलम लिए हुए कभी न तुम डरो।...

नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते। कब प्रसन्न, अवसन्न हुए कब, है कोई जिसने यह जाना? नहीं तुम्हारी मुख मुद्रा ने...

आज देश के ऊपर कैसी काली रातें आई हैं! मातम की घनघोर घटाएँ कैसी जमकर छाई हैं!...

मुझ से चाँद कहा करता है-- चोट कड़ी है काल प्रबल की, उसकी मुस्कानों से हल्की, राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|...

आज तुम्हारा जन्म-दिवस है, घड़ी-घड़ी बहता मधुरस है, अजित हमारे, जियो-जियो! अमलतास पर पीले-पीले,...

क़दम कलुष निशीथ के उखड़ चुके, शिविर नखत समूह के उजड़ चुके, पुरा तिमिर दुरा चला दुरित वदन, नव प्रकाश में अभी विलंब है।...

आज राजीव का जन्म-दिन आ गया, सौ बधाई तुम्हें, सौ बधाई तुम्हें। आज आनन्द का घन गगन छा गया,...

तू देख नहीं यह क्यों पाया? तारावलियाँ सो जाने पर, देखा करतीं तुझको निशि भर, किस बाला ने देखा अपने बालम को इतने लोचन से?...

साथी, सांझ लगी अब होने! फैलाया था जिन्हें गगन में, विस्तृत वसुधा के कण-कण में, उन किरणों को अस्तांचल पर पहँच लगा है सूर्य सँजोने!...

वह साल गया, यह साल चला। मित्रों ने हर्ष-बधाई दी, मित्रों को हर्ष-बधाई दी, उत्तर भेजा, उत्तर आया,...