कवि का दीपक
आज देश के ऊपर कैसी काली रातें आई हैं! मातम की घनघोर घटाएँ कैसी जमकर छाई हैं! लेकिन दृढ़ विश्वास मुझे है वह भी रातें आएँगी, जब यह भारतभूमि हमारी दीपावली मनाएगी! शत-शत दीप इकट्ठे होंगे अपनी-अपनी चमक लिए, अपने-अपने त्याग, तपस्या, श्रम, संयम की दमक लिए। अपनी ज्वाला प्रभा परीक्षित सब दीपक दिखलाएँगे, सब अपनी प्रतिभा पर पुलकित लौ को उच्च उठाएँगे। तब, सब मेरे आस-पास की दुनिया के सो जाने पर, भय, आशा, अभिलाषा रंजित स्वप्नों में खो जाने पर, जो मेरे पढ़ने-लिखने के कमरे में जलता दीपक, उसको होना नहीं पड़ेगा लज्जित, लांच्छित, नतमस्तक। क्योंकि इसीके उजियाले में बैठ लिखे हैं मैंने गान, जिनको सुख-दुख में गाएगी भारत की भावी संतान!

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